उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि विभाग ने बाकायदा
लिखित में यह बात कही है कि गोमूत्र कैसे खेती-किसानी में काम आएगा। किसान घर बैठे
कैसे इसका कीटनाशक बनाकर कंपनियों पर अपनी निर्भरता कम कर सकते हैं। इससे किसानों
को कीटनाशक पर खर्च घटेगा और उनकी आमदनी बढ़ेगी। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि
पौधे की बढ़त यदि रासायनिक खाद से ही संभव होता तो सारे जंगल सूख गए होते,लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ। इसका मतलब साफ है कि मिट्टी में
पौधों के लिए जरूरी तत्व पहले से ही मौजूद हैं।
इन्हें गाय के गोबर और गोमूत्र से एक्टिव किया जा सकता है।
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कृषि,गोमूत्र के लाभ गोमूत्र बड़े बहस का
मुद्दा है। उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक गोमूत्र और गोबर सस्ती एवं
सर्वश्रेष्ठ खाद है। यह जमीन की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखती है। गोबर एवं गोमूत्र की
खाद से पैदा होने वाली सब्जियां और फसल रासायनिक खाद के मुकाबले स्वास्थ्य वर्धक
होती हैं। इसका इस्तेमाल करके आप कीटनाशक के जहर से बच जाते हैं। विभाग दावा करता
है कि कृषि वैज्ञानिक इस बात पर एकमत हैं कि रासायनिक खादों और कीटनाशकों के
इस्तेमाल से नष्ट हुई जमीन की उपजाऊ शक्ति का एकमात्र विकल्प गोबर और गोमूत्र की खाद
है।
कृषि विभाग के मुताबिक भारतीय नस्ल की देसी गाय के एक लीटर गोमूत्र को एकत्रित
कर 40 लीटर पानी में घोलकर यदि दलहन, तिलहन और सब्जी आदि के
बीज को 4 से 6 घंटे भिगो कर खेत में बुवाई की जाती है तो बीज का अंकुरण अच्छा,
जोरदार एवं रोग रहित होता है। बीज जल्दी जमता है। इसके इस्तेमाल से
जमीन के लाभकारी जीवाणु बढ़ते हैं। जो खराब जमीन है वो ठीक हो जाती है. सिंचाई के
लिए कम पानी की जरूरत पड़ती है। क्योंकि जमीन की बारिश का पानी सोखने और रोकने की
क्षमता बढ़ जाती है। गोमूत्र कीटनाशक से फसल हरी-भरी हो जाती है और रोगों का
प्रकोप कम होता है। किसान अपने घर पर ही ऐसे बना सकते हैं कीटनाशक:- गोमूत्र एवं
तंबाकू की सहायता से भी कीटनाशक तैयार किया जाता है।
इसके लिए 10 लीटर गोमूत्र में
एक किलो तंबाकू की सूखी पत्तियों को डालकर उसमें 250 ग्राम नीला थोथा घोलकर 20 दिन
तक बंद डिब्बे में रख देते हैं। फिर इसके एक लीटर में 100 लीटर पानी मिलाकर घोल का
छिड़काव करने से फसल का बालदार सूंडी से बचाव हो जाता है। इसका छिड़काव दोपहर में
करना चाहिए। यह विधि भी अपना सकते हैं किसान:- कृषि अधिकारियों के मुताबिक गोमूत्र
और लहसुन की गंध के साथ कीटनाशक बनाकर रस चूसने वाले कीटों को नियंत्रित किया जा
सकता है। इसके लिए 10 लीटर गोमूत्र में 500 ग्राम लहसुन कूटकर उसमें 50 मिलीलीटर
मिट्टी का तेल मिला देते हैं। मिट्टी के तेल और लहसुन के पेस्ट को गोमूत्र में
डालकर 24 घंटे वैसे ही पड़ा रहने देते हैं।
फिर इसमें 100 ग्राम साबुन अच्छी तरह
मिलाकर और हिलाकर महीन कपड़े से छान लेते हैं। एक लीटर इस दवा को 80 लीटर पानी में
घोलकर छिड़काव से फसल को चूसक कीटों सुरक्षित रखा जा सकता है। गोमूत्र और नीम की
पत्तियों से भी कीटनाशक बनता है और वह फसल को कई प्रकार के रोगों से बचाने में काम
आता है। बूढ़ी गाय का मूत्र ज्यादा लाभदायक होता है। सिक्किम में किसान इसका
इस्तेमाल करने लगे हैं। आईआईटी को मिले हैं रिसर्च के प्रस्ताव:- आईआईटी दिल्ली को
पंचगव्य यानी गाय के गोबर, मूत्र, दूध,
दही और घी के लाभों पर रिसर्च करने के लिए विभिन्न अकैडमिक और
रिसर्च संस्थानों से 50 से ज्यादा प्रस्ताव मिले हैं। सरकार ने 19 सदस्यों की एक
कमेटी भी बनाई है जो गोमूत्र से लेकर गोबर और गाय से मिलने वाले हर पदार्थ पर
रिसर्च करेगी। इसमें आरएसएस और वीएचपी के तीन सदस्य भी शामिल हैं।
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