हिंदू धर्म में जहां अग्नि को देवता का दर्जा दिया गया है वहीं पारसी धर्म
के मंदिरों में अग्नि स्थापित की
जाती है। पारसी धर्म सहित हिंदू धर्म में भी अग्नि को ऊर्जा का स्त्रोत मानकर उसकी पूजा की जाती है।
सभी पवित्र धार्मिक और मांगलिक कार्यों में अग्नि का प्रयोग होता है। महाभारत काल
के महात्मा विदुर ने अपने ही तरीके से आग के स्वरूपों का वर्णन किया है। उन्होंने
कहा है कि इंसान का जीवन 5 प्रकार की अग्नि की वजह से ही संभव है। इसलिए व्यक्ति
को अग्नि के इन स्वरूपों का सम्मान करना चाहिए। अगर वो इनका अनादर करता है तो
नुकसान का भागी होता है और जीवन भर कष्ट में रहता है।
आइए जानते हैं विदुर जी ने
जीवन में अग्नि के किन प्रकारों का सम्मान करने की सलाह दी है। महात्मा विदुर ने
मां की तुलना आग से की है। मां बच्चे के जन्म लेने से पहले और उसके बाद उसकी
परवरिश में खुद को भी भूल जाती है और अपने सारे सुख, सुविधाओं का
त्याग कर देती है ऐसे में यदि बच्चा बड़ा होकर मां का सम्मान नहीं करता है और उसका
ख्याल नहीं रखता है तो ये उसके लिए काफी नुकसानदायक होता है। विदुर ने पिता के
त्याग का वर्णन करते हुए उन्हें दूसरे नंबर पर रखा है। पिता बच्चों की इच्छा पूरी
करने के लिए कई तकलीफें उठाता है लेकिन बच्चों पर कोई परेशानी नहीं आने देता है। इसलिए
बच्चों को बड़ा होकर पिता का मान, सम्मान और
सेवा करनी चाहिए।
विदुर ने शिक्षा देने वाले गुरु को भी आग के समान ही पवित्र माना
है। जिस तरह आग खुद जलकर दूसरों को रोशनी देती है। ठीक इसी तरह गुरु अध्यापन कार्य
द्वारा अपने शिष्यों को प्रगति और सद्बुद्धि की राह दिखाता है। इसलिए हमेशा अपने
गुरु को सम्मान देना चाहिए। विदुर ने मनुष्य के प्राण यानी कि आत्मा को भी आग के
समान ही माना है। आत्मा हमेशा मनुष्य को सत्य और ज्ञान का रास्ता दिखाती है,लेकिन जब मनुष्य गलत रास्ते पर चलने लगता है तो
उसकी आत्मा कमजोर होने लगती है।
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