ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु भारत के मशहूर
योगी और सूफी संत और लेखक हैं। उनका पूरा नाम जग्गी वासुदेव हैं। सद्गुरु जग्गी
वासुदेव ने महिलाओं के पीरियड्स के दौरान धार्मिक कार्य, रसोई या पूजा स्थलों में प्रवेश करने से रोकने की प्रथा पर बचाव
किया है। सद्गुरु ने महिलाओं
के पीरियड्स के दौरान मंदिर में प्रवेश और धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल नहीं होने
का कारण बताया है। उन्होंने कहा कि मैं नहीं जानता कि आपने ध्यान दिया है या नहीं। एक समय हर शिव
मंदिर के आंगन में एक इमली का पेड़ हुआ करता था। इन पेड़ों को मंदिर के बाहर इसलिए
लगाया जाता था क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि नेगेटिव एनर्जी देवताओं के आस-पास रहने
का अवसर खो दें। इसलिए उन्होंने एक ऐसी जगह बना दी, जहां
भूत-प्रेत देवताओं के स्थान यानी मंदिर के आस-पास रह सके। 

ऐसे में अगर एक महिला
पीरियड्स में है और वह मंदिर या किसी धार्मिक स्थल में प्रवेश करती है तो उसके
भूत-प्रेत या नेगेटिव एनर्जी से आकर्षित होने की संभावना ज्यादा हो जाती है। सद्गुरु ने पीरियड्स
के दौरान महिलाओं के बाहर न निकलने का कारण बताया। उन्होंने कहा कि आज जैसी परिस्थितियां
है वैसी पहले नहीं थीं। पहले दुनिया जंगली जानवरों से भरी हुई थी। वन्य जीवन के
लिए कोई खास क्षेत्र नहीं थे। हर जगह वन्यजीव विचरण करते थे। उस समय आप वन्य जीवन
के साथ ही रहते थे। सदगुरु ने बताया कि जब महिलाएं पीरियड्स में होती हैं तो उनके
शरीर से खून की गंध आती है। उस समय अगर आप बाहर जाएं, तो आपका जीवन खतरे में हो सकता है। मांसाहारी जानवर खून की गंध
से आप पर हमला कर सकते हैं।
सदगुरु ने कहा कि सबसे अच्छा ये है कि महिलाएं
पीरियड्स के दौरान बाहर न निकलें और कमरे में ही रहें। अगर वे बाहर आती हैं तो
अपना जीवन खतरे में डाल रही हैं। क्योंकि जंगली जानवर 1 मील दूर से ही खून की गंध को पहचान लेता है। इस वजह से पीरियड्स
के दौरान महिलाओं को भीतर होना चाहिए, न कि
बाहर।
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