Friday, July 19, 2019

महामृत्युंजय मंत्र का जप सावन में देता है सौ गुणा फल...जाने आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व...


 सावन के पवित्र महीने में भोले नाथ अर्थात शिव शंकर को प्रसन्न करना है तो महामृत्युंजय मंत्र का जा बीमारियां और हर तरह की मानसिक एवं शारीरिक परेशानियों को दूर करने के लिए बहुत असरदार माना गया है। ग्रंथों का मानना है कि इससे अकाल मृत्यु के योग भी टल सकते हैं। स्वर विज्ञान के हिसाब से देखा जाए तो महामृत्युंजय मंत्र के अक्षरों का विशेष स्वर के साथ उच्चारण किया जाए तो उससे उत्पन्न होने वाली ध्वनी से शरीर में जो कंपन होता है। जिससे उच्च स्तरीय विद्युत प्रवाह पैदा होता है और वो हमारे शरीर की नाड़ियों को शुद्ध करने में मदद करता है।
# पूर्ण महामृत्युंजय मंत्र:- ऊं हौं जूं सः ऊं भूर्भुवः स्वः ऊं त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ऊं स्वः भुवः भूः ऊं सः जूं हौं ऊं महामृत्युंजय मंत्र का आध्यात्मिक महत्व:- इसके पीछे सिर्फ धर्म नहीं है, पूरा स्वर सिद्धांत है। इसे संगीत का विज्ञान भी कहा जाता है। महामृत्युंजय मंत्र की शुरुआत ऊँ से होती है। लंबे स्वर और गहरी सांस के साथ ऊँ का उच्चारण किया जाता है। इससे शरीर में मौजूद सूर्य और चंद्र नाड़ियों में कंपन होता है। हमारे शरीर में मौजूद सप्त चक्रों में ऊर्जा का संचार होता है। जिसका असर मंत्र पढ़ने वाले के साथ मंत्र सुनने वाले के शरीर पर भी होता है। इन चक्रों के कंपन से शरीर में शक्ति आती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इस तरह स्वर और सांस के तालमेल के साथ जाप करने पर बीमारियों से जल्दी मुक्ति मिलती है।
# वैज्ञानिक महत्व महामृत्युंजय मंत्र के हर अक्षर का विशेष महत्व और विशेष अर्थ है। प्रत्येक अक्षर के उच्चारण में अलग-अलग प्रकार की ध्वनियां निकलती हैं तथा शरीर के विशेष अंगो और नाड़ियों में खास तरह की कम्पन पैदा करती हैं। इस कंपन के द्वारा शरीर से उच्च स्तरीय विद्युत प्रवाह पैदा होता है। इस विद्युत प्रवाह से निकलने वाली तरंगे वातावरण एवं आकाशीय तरंगो से जुड़कर कर मानसिक और शारीरिक उर्जा देती है।# धार्मिक महत्व:- ये मंत्र ऋग्वेद और यजुर्वेद में भगवान शिव की स्तुति में लिखा है। इनके अलावा पद्मपुराण और शिवपुराण में भी इस महामंत्र का महत्व बताया गया है। 
शिव पुराण के अनुसार इस मंत्र का जाप करने से लंबी उम्र, आरोग्य, संपत्ति, यश और संतान प्राप्ति भी होती है। वहीं इस मंत्र का जप करने से 8 तरह के दोषों का भी नाश होता है। इस महामंत्र से कुंडली के मांगलिक दोष, नाड़ी दोष, कालसर्प दोष, भूत-प्रेत दोष, रोग, दुःस्वप्न, गर्भनाश, संतानबाधा जैसे कई दोषों का नाश होता है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन पर देवाताओं और असुरों की लड़ाई के समय शुक्राचार्य ने अपनी यज्ञशाला मे इसी महामृत्युंजय मंत्र के अनुष्ठान का उपयोग देवताओं द्वारा मारे गए राक्षसों को जीवित करने के लिए किया था। इसलिए इसे मृत संजीवनी के नाम से भी जाना जाता है।

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