छत्तीसगढ़ के जनजातीय इलाके में पाई जाने वाली घोटुल
प्रथा की परंपरा आदिवासी इलाकों में रहने
वाले माड़िया और मुरिया जनजाति में आज भी निभाई जाती
है। यह जनजाति छत्तीसगढ़ के बस्तर और महाराष्ट्र के चंद्रपुर और गढ़चिरौली जिलों
में पाई जाती है। माड़िया जनजाति मूल रूप से गोंड जनजाति की उपजाति है। घोटुल के
दौरान मिट्टी की बनी झोपड़ी में आदिवासी समुदाय के युवक-युवतियों को इकट्ठा किया
जाता है। इस दौरान युवाओं को एक-दूसरे से मिलने और जानने-समझने का मौका मिलता है। घोटुल
में भाग लेने वाली लड़कियों को मोतियारी और लड़कों
को छेलिक कहा जाता है। घोटुल के दौरान ये लोग
बुजुर्ग व्यक्तियों की देख-रेख में रहते हैं। घोटुल में शामिल होने के लिए लड़कों और
लड़कियों के लिए निश्चित उम्र सीमा निर्धारित है। इसके लिए लड़कों की उम्र 21 वर्ष और लड़कियों
की 18 वर्ष होती है। घोटुल में रहने वाले
युवक-युवतियों को कपल बनने से पहले अपने आप को एक दूसरे के साथ सहज महसूस करने के
लिए सात दिनों तक साथ रहना पड़ता है। इस दौरान वे एक-दूसरे के समूह के सदस्यों के
साथ समय बिताते हैं और वैवाहिक जीवन से जुड़ी विभिन्न शिक्षाएं प्राप्त करते हैं। घोटुल
में शामिल हुए लड़कों को बांस की एक कंघी बनानी होती है। यह कंघी बनाने में वह
अपनी पूरी ताकत और कला झोंक देता है, क्योंकि यही कंघी तय करती है कि वह किस
लड़की को पसंद आएगी।
घोंटुल में आई लड़की को जब कोई लड़का पसंद आता है तो वह उसकी
कंघी चुरा लेती है। यह संकेत होता है कि वह उस लड़के को चाहती है। जैसे ही वह
लड़की यह कंघी अपने बालों में लगाकर निकलती है, सबको पता चल जाता है कि वह किसी को
चाहने लगी है। इसके बाद दोनों एक ही
झोंपड़ी में रहने लगते हैं। घोटुल एक बड़े कुटीर को कहते हैं, जिसमें पूरे गांव के बच्चे या किशोर
सामूहिक रूप से रहते हैं। इसके लिए विवाहित पारिवारिक जोड़े इकट्ठा होते हैं और एक
नई झोपड़ी का निर्माण करते हैं। यह जनजातीय गांवों का सामाजिक और सांस्कृतिक
केंद्र होता है। जिसे रंगों की मदद से आदिवासी शैली में सजाया जाता है।
जिसके लिए
मिट्टी, लकड़ी, तख्तियां और बारूद का उपयोग किया जाता
है। यह एक प्रकार का सामूहिक आयोजन होता है, जहां लोग अपनी बोली, नाच, गाने और परंपरागत रिवाजों के साथ आयोजन
का आनंद लेते हैं। घोटुल संबंधी परंपराओं में अलग-अलग क्षेत्रों में अंतर देखने को
मिलता है। कुछ क्षेत्रों में जवान लड़के-लड़कियां घोटुल में ही सोते हैं। जबकि कुछ
क्षेत्रों में वे दिन भर घोटुल में रहने के बाद रात को अपने-अपने घरों पर सोने
जाते हैं। वहीं कुछ क्षेत्रों में नौजवान लड़के-लड़कियां आपस में मिलकर जीवन साथी
चुनते हैं। हालांकि यह परंपरा अब धीरे-धीरे कम हो रही है।
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