कांग्रेस से अलग होकर साल 1925 में केशव
बलिराम हेडगवार ने प्रथम विश्व युद्ध में बनी यूरोपियन राइट-विंग की तरह एक संगठन
की स्थापना की। इसका नाम रखा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जो बाद में
संघ के नाम से ज्यादा चर्चित हुआ। संघ पर शोध कर चुके विदेशी लेखक वाल्टर एंडरसन
के मुताबिक दिसंबर 1920 में ही हेडगवार ने आरएसएस की परिकल्पना
की थी। दरअसल, 1920 में नागपुर में ही कांग्रेस कार्यसमिति का वार्षिक
अधिवेशन हुआ था। हेडगेवार ने इसका विरोध किया और कुछ युवकों के साथ अलग से
कार्यक्रम आयोजित करवाए। इसमें शामिल होने वाले अधिकांश ब्राह्मण युवक थे। हेडगेवार
का मानना था कि जब तक देश का हिंदू (बहुसंख्यक)
एकजुट नहीं होगा, तब तक आजादी
का कोई ज्यादा मतलब नहीं है। वे अक्सर कहते थे,भले ही अंग्रेज चले जाएं, जब तक
हिंदू एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में संगठित नहीं होंगे, इसकी क्या
गारंटी है कि हम अपनी स्वतंत्रता की रक्षा कर पाएंगे? शुरू में
संगठन का काम सिर्फ नागपुर में संचलित होता था। यहां हेडगेवार के नेतृत्व में कुछ
युवक सुबह शाखा लगाते थे और शाम को लोगों को जागरूक करते थे। धीरे-धीरे संघ का
विस्तार नागपुर के आसपास के इलाकों में भी होने लगा। संघ का शुरुआती मिशन भारत को
हिंदू राष्ट्र बनाने की थी, जिसे 1947 के बाद बदला गया। संघ
के संविधान के मुताबिक यह संगठन हिंदुओं को एकजुट करेगा और उन्नत राष्ट्र बनाने के
लिए काम करेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दशहरा 2023 को अपना 98 साल पूरा
कर लिया है। 1925 में गठित आरएसएस के देश भर में 1 करोड़ से
ज्यादा सदस्य हैं।
स्थापना के बाद से कई बार विवादों रहने वाले इस संगठन पर 3 बार बैन भी
लग चुका है। पहली बार बैन महात्मा गांधी की हत्या के बाद लगा था। उस वक्त केंद्र
सरकार को शक था कि गांधी की हत्या के पीछे आरएसएस की साजिश है। पहली बार संघ
प्रमुख समेत संगठन के बड़े नेताओं को जेल भेजा गया था। दूसरी बार आपातकाल के दौरान
संघ पर बैन लगा। संघ के सभी कार्यकर्ताओं को मीसा कानून के तहत जेल भेजा गया। तीसरी
बार 1992 में संघ पर बैन लगा और इस बार आरएसएस पर द्वेष फैलाने
का आरोप था। हालांकि, इस बार बैन की मियाद सिर्फ 6 महीने की
थी। संघ का अपना संविधान भी है, जो 1949 में बनाया गया था।
इस
संविधान में कुल 25 अनुच्छेद हैं, जिसके
हिसाब से संघ अपने कामकाज को संचलित करता है। संघ की पूरी इकॉनोमी चंदा और उपहार
के सहारे है. संगठन के संविधान के मुताबिक संघ से जुड़े किसी भी ब्रांच या व्यक्ति
को अगर कोई दान या उपहार मिलता है, तो वह संघ के फंड
में जाएगा। संघ में फंड मैनेजमेंट का काम प्रांत स्तर पर संघचालक और निधि प्रमुख
का होता है। हालांकि, संघ अपने आय और व्यय को सार्वजनिक नहीं
करता है। कोरोना के वक्त संघ के इनकम पर विवाद भी हुआ था। नागपुर के एक कार्यकर्ता
ने ईडी से शिकायत की थी कि आरएसएस न तो कोई ट्रस्ट है और न ही एनजीओ, तो फिर
इसके पास लाखों-करोड़ों रुपए कहां से आए?हालांकि, यह मामला
ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाया। शाखा के सदस्यों को स्वयंसेवक कहा जाता है।
18 साल से
अधिक उम्र के कोई भी व्यक्ति स्वयंसेवक बन सकता है। संघ का सभी बड़े फैसले
केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल और अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में लिया जाता है। इस
फैसले को जमीन पर उतारने का काम प्रचारकों का होता है। प्रचारक प्रांतीय सभा के
जरिए शाखा से संपर्क साधकर लोगों तक अपना संदेश पहुंचाते हैं। शारीरिक क्रियान्वयन
के अलावा संघ शैक्षणिक क्रियाकलाप के जरिए भी लोगों तक अपनी पहुंच बनाता है। इसके
लिए संघ देश के कई हिस्सों में सरस्वती विद्या मंदिर जैसे छोटी पाठशालाएं संचलित
करता है। इन पाठशालाओं में संघ के पदाधिकारी ही पढ़ाते हैं। विश्व संवाद केंद्र के
जरिए संघ अपना विचार बौद्धिक जगत के लोगों तक पहुंचाता है। यह केंद्र देश के
अलग-अलग हिस्सों में स्थापित है।
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