दिल से जुडी तमाम बीमारियों के लिए अब तक सबसे ज्यादा असरदार
इलाज बाईपास सर्जरी को माना जाता आ रहा है। पल्स रुकने से लेकर आर्टरीज के ब्लॉक
होने तक लगभग सभी बीमारियों के लिए मरीज ओपन हार्ट सर्जरी काराने के लिए मजबूर
होता है। भारत में हर साल करीब 60 हजार बाईपास सर्जरी की जाती हैं। इसमें न सिर्फ
बड़ा खर्चा होता है ब्लकि सावधानी न बरतने पर ब्लॉकिंग और भी बढ़ जाती है और
दोबारा सर्जरी करानी पढ़ती है। ऐसे में एक नई तकनीक दिल के मरीजों के लिए वरदान
साबित हो रही है।
इस तकनीक का नाम है मिनिमल इंनवेसिव कारडियक सर्जरी यानी
(एमआईसीएस) इस तकनीक की मदद से बिना बाईपास सर्जरी के हृदय संबंधी बीमारियों का
इलाज किया जा सकता है। इसको ब्लाक हुई ब्लड वैसील्स को बाईपास करने के लिए अब तक
की बेस्ट तकनीक माना गया है। इस प्रकिया में खास रिट्रेक्टर की मदद से पसलियों
बिना काटे बीच से फैलाया जाता है। जबकि आम बाईपास सर्जरी में छाती की हड्डी में
चीरा लगाया जाता है। पसलियों को बीच से फैलाने के बाद विशेष उपकरणों की मदद से
ब्लड वैसील्स तक पहुंचा जाता है। इसके लिए खास तौर पर बने स्टेबलाइजर और पोसिशनर
की मदद ली जाती है।
ब्लड वैसील्स तक पहुंचते ही दूसरी जगह से लिए गए वैसील्स को
ब्लॉक हुई ब्लड वैसील्स के साथ सिल दिया जाता है। यहां लगाए गए टांके कितने महीन
होते हैं इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसमें इस्तेमाल होने
वाली सूई की चौडाई इंसान के बाल से भी आधी होती है। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान
मैगनिफिकेशन ग्लास का इस्लेमाल किया जाता है। साथ ही इस प्रकिया के लिए इस्तेमाल
की गई पैर की धमनियों को भी बिना किसी तरह से चीरा लगाए एंडोस्कोपी की मदद से
निकाला जाता है। पारंपरिक सर्जरी के मुकाबले एमआईसीएस के कई फाएदे हैं। सबसे बड़ा
फायदा तो ये है कि इस में हड्डियों में चीरा नहीं लगता। इसके अलावा आम सर्जरी के
मुकाबले इस प्रकिया में मरीज को बहुत कम दर्द होता है।
चीरा न लगने की वजह से घाव
या इनफ़ेक्शन का खतरा भी नहीं रहता और सांस लेने में भी सकारात्मक प्रभाव पढ़ता है।
सबसे जरुरी बात ये है कि क्योंकि इस प्रकिया में ज्यादा खून नहीं बहता इसलिए मरीज
को अलग से खून चढ़ाने की भी जरुरत नहीं पढती। दुनिया भर में मिनिमल इंनवेसिव कारडियक सर्जरी कुछ चुनिंदा
केंद्रों में ही होती है जिनमें बैंगलोर का अपोलो अस्पताल शामिल है। इस अस्पताल
में अब तक 1200 से भी ज्यादा एमआईसीएस हो चुके हैं। पूरी दुनिया में एक ही केंद्र
से इतने एमआईसीएस अभी तक और कहीं नहीं हुए हैं। 86 साल के मिश्रा बताते हैं कि
उनकी उम्र में मिनिमल इंनवेसिव कारडियक सर्जरी होने से उनके जीवन में बड़ा बदलाव
आया है। वो खुश हैं और पूरी तरह से एक्टिव हैं। मोहम्मद हबीदुल्ला की कहानी अनोखी
है।
इनको ब्रेन सर्जरी के लिए अस्पताल लाया गया था,लेकिन इलाज के
दौरान पता चला कि इनके दिल में कई ब्लोक हैं इसके बाद पहले इनकी मिनिमल इंनवेसिव
कारडियक सर्जरी की गई फिर ब्रेन सर्जरी की गई और इस सब में सिर्फ दो हफ्तों का समय
लगा। अपोलो अस्पताल के सीनियर हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ साई सतीश कहते हैं कि कई ऐसे
भी मरीज होते हैं जिन पर सर्जरी नहीं की जा सकती, ऐसे मरीजों को
मिनिमल इंनवेसिव थेरेपी से काफी फाएदा मिलेगा। नई तकनीक न सिर्फ मरीज जीनव में और
साल जोड़ती है बल्कि हर साल को जीवन भी देती है।
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