Saturday, April 27, 2019

संतो की अमृत वाणी....

# मनुष्य जन्म दूसरों को सुखी करने के लिए है दूसरों की सेवा करो। # सभी पापों का मूल वाणी (बोल ) है। कभी भी किसी से ऊँची आवाज में बात न करो।   कर्कशवाणी में से कलह का जन्म होता है,कर्कशवाणी जहर के समान है,जो भी बोलो सोच-समज कर धीरे से बोलो। # जिसका बंगला (हवेली) बड़ा हो उसके वहां परमात्मा जल्दी नहीं जाते पर जिसका मन बड़ा हो उसके वहां परमात्मा जल्दी पधारते है। # शास्त्रों में लिखा हुआ है की संपति, संतति और संसारसुख पूर्वजन्म के कर्मो से ही निश्चित होता है। # कोई आपकी निंदा करे या आपसे द्वेष करे तो उसका प्रतिकार मत करो और उसको पेट में छुपाये मत रखो। उस बात को याद मत रखो। सहन कर लो और भूल जाओ। अंतर मन में प्रभु (हरि) को रखना है तो उसमे जहर मत रखो।
# प्रभु अतिशय सरल है। जीव (मनुष्य) बार-बार पाप करता है पर परमात्मा उसको भूल जाते है। किसी का उपकार मत भूलो और किसी का अपकार याद मत रखो। # आपके मन (ह्रदय) को माखन की तरह कोमल बनाओ। जरा भी कपट मत करो। कर्कशवाणी मत बोलो, सभी को मान दो। किसी जीव का जरा सा भी अपमान मत करो। किसी को भी कम मत समझो कोई भी प्राणी या मनुष्य को कम-हल्का मत आंको। # दुःख सहन करके भगवान की भक्ति करे उसको तप कहते है।# कपट करने से ह्रदय टेढ़ा हो जाता है। मनुष्य के जैसा कोई लुच्चा (गठिया) नहीं है और भगवान के जैसा कोई भोला नहीं है। # मानव-जीवन में धन श्रेष्ठ नहीं है, धर्म श्रेष्ठ है। धन का लोभ अच्छा नहीं है।# कोई मानव राजी हो या नहीं इससे आपको कोई फरक नहीं पड़ना चाहिए। 
वह राजी या खुश होके आपको क्या देनेवाला था ? या फिर नाराज होके आपका क्या बिगाड़ने वाला था ? हंमेशा ऐसा सोचो की मेरा संबंध सिर्फ इश्वर से है, कोई मेरी कदर करे उसकी अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए।# ज्ञान से त्याग की भावना बढती है और भक्ति करने से समर्पण की भावना बढ़ती है।  व्यवहार बहुत कठिन है। परमार्थ बहुत सरल है। व्यवहार में कोई भूल होती हो  तो लोग आपको माफ़ नहीं करते है, सजा करते है। भक्ति में भूल हो जाये तो भगवान क्षमा कर देते है। परमात्मा बहुत बड़े दिलवाला है। # भक्तिमार्ग में भगवान का विस्मरण करना वह पाप के समान है। # आप किसी के साथ दगा मत करो पर व्यवहार में सावधान रहना ताकि आपके साथ भी कोई दगा न कर सके।# आज मेरे प्रभु प्रसन्न हो ऐसा कोई सत्कर्म मैंने किया के नहीं ? अन्दर से ना का जवाब आये तो समज लो की आज के दिन में जिया ही नहीं हूँ , सिर्फ मरा हूँ। मन को निराशा में मत रखो। 
मन को कोई काम न मिले तो वह बहुत विचार करने लगता है। मन को कोई आधार मिलना चाहिए। मन परमात्मा का ध्यान नहीं करेगा तो फिर जगत का ध्यान करेगा। धन का सदुपयोग करो।  आपको भगवान ने ज्यादा दिया है तो ऐसा समझो की भगवान के अन्य बालकों को देने के लिए प्रभु ने मुझे ज्यादा दिया है। आपका खुद का श्राद्ध अपने ही हाथों से करके जगत को जय श्री कृष्ण अर्पण करना।  जीवन को परोपकार और परमात्मा के कार्य में जोड़ देना वहीँ सच्चा श्राद्ध कहलाता है। पुत्र के द्वारा नहीं सदगति तो सिर्फ सत्कर्म से ही मिलती है। # ज्ञान मार्ग में भेद द्रष्टि ही पाप है। जहाँ पर भेदभाव आया वहाँ भय उत्पन्न होता है,म़ोह उत्पन्न होता है।# संसार का सुख वह (नसीब) प्रारब्ध का फल है। सत्संग वह परमात्मा की कृपा  का फल है।

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