साल 628 में
पैगंबर मोहम्मद ने अपने 1400 शिष्यों
के साथ एक यात्रा की शुरुआत की थी। ये
इस्लाम की पहली तीर्थयात्रा बनी और इसी यात्रा में पैगंबर इब्राहिम की धार्मिक
परंपरा को फिर से स्थापित किया गया था। इसी
को हज कहा जाता है। हर साल दुनियाभर के
मुस्लिम सऊदी अरब के मक्का में हज के लिए पहुंचते हैं। हज
में पांच
दिन लगते
हैं और ये यात्रा ईद उल अजहा या बकरीद के साथ पूरी होती है। इस
यात्रा के लिए सऊदी अरब हर देश के हिसाब से अलग हज का कोटा तैयार करता है। इस
यात्रा के लिए सबसे ज्यादा कोटा इंडोनेशिया को मिलता है। इसके
बाद पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, नाइजीरिया
को कोटा दिया जाता है। इसके इतर
ईरान, तुर्किये, मिस्र, इथियोपिया
समेत कई देशों से भी हज यात्री आते हैं। हज
यात्री पहले सऊदी अरब के जेद्दाह शहर पहुंचते हैं। वहां
से वो बस के जरिए मक्का पहुंचते हैं। जहां
उन्हें हज पर जाने का मौका मिलता है। इस्लाम
में कहा गया है कि शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हर मुसलमान को हज पर जाना जरूरी
है।
ऐसे में हज के दौरान कई रीति-रिवाज
और परंपराओं का पालन भी करना जरुरी होता है। हज
के ये नीयम सदियों से चले आ रहे हैं। इसमें
खास पोशाक भी शामिल होती है। आपने
अक्सर हज यात्रियों को सफेद कपड़ों में देखा होगा, इस
दौरान खासकर पुरुष यात्री सफेद कपड़ों में नजर आते हैं। दरअसल
सफेद कपड़ने पहनना, हज
के दौरान पालन की जाने वाली तमाम परंपराओं में से एक है।
इस
परंपरा को इहराम कहा
जाता है। हज यात्रियों को
पवित्र मक्का पहुंचने से पहले रास्ते में इहराम संपन्न करना जरूरी होता है। इहराम का
मतलब है खुद को हर तरह के पाप और गलतियों से दूर करना होता है। इस
दौरान हज यात्री बिना सिला हुआ दो टुकड़ों में कटा सफेद कपड़ा पहनते हैं। इस्लाम
के जानकारों के मुताबिक सफेद कपड़ा पहनने का मतलब है कि अब आप खुदा से मिलने के
लिए तैयार हैं। हालांकि महिलाओं के
लिए हज यात्रा के दौरान नियम अलग होते हैं। हज
यात्रा के दौरान सिर्फ पुरुषों के लिए ही सफेद कपड़े पहनना अनिवार्य होता है। महिलाओं
के लिए सफेद कपड़े की अनिवार्यता नहीं है. वो
किसी भी रंग का ढीला-ढाला
कपड़ा पहन सकती हैं। हज यात्रा के दौरान
महिलाएं काले या सफेद रंग का अबाया पहनती हैं।
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