Tuesday, November 7, 2023

प्लास्टिक पर निर्भर जीवन कितना घातक.....

साइंस जर्नल एसीएस पब्लिकेशन्स में छपी एक स्टडी के एक्सपर्ट्स के अनुसार, हर साल हम 39 से लेकर 55 हजार प्लास्टिक के टुकड़े निगल जाते हैं या सांस के जरिए ये हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इंसानों की नसों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाया है। इस स्टडी में पता चला है कि हर ग्राम ऊतक में माइक्रोप्लास्टिक के लगभग 15 कण मिले हैं। माना जाता है कि इस तरह हर हफ्ते एक व्यक्ति के शरीर में लगभग एक क्रेडिट कार्ड जितना प्लास्टिक पहुंच रहा है। ये प्लास्टिक नसों से होता हुआ हार्ट और ब्रेन तक पहुंच जाता है। प्लास्टिक की खोज एक एक्सीडेंट से हुई थी। दरअसल 1846 में प्रसिद्ध जर्मन रसायनशास्त्री क्रिश्चियन शॉनबीन 
अपने किचन में कुछ प्रयोग कर रहे थे। इस बीच गलती से उनसे नाइट्रिक एसिड और सल्फ्यूरिक एसिड का मिश्रण नीचे गिर गया। इस घोल को पोछने के लिए उन्होंने एक कपड़ा लिया और पोछा लगाने के बाद उस कपड़े को चूल्हे पर रख दिया। कुछ समय बाद कपड़ा गायब हो गया और एक पदार्थ बचा। जिसे प्लास्टिक के रूप में जाना गया। प्लास्टिक एक ऐसी सामग्री है जो किसी सिंथेटिक या अर्ध-सिंथेटिक प्रकार के पॉलिमर से निर्मित हुई है। पॉलिमर एक बड़ा अणु है जो जुड़े हुए दोहराए जाने वाली चीजों या छल्लों से बना होता है
जिन्हें मोनोमर्स कहते हैं। रेशम, रबर, सेलूलोज, केराटिन, कोलेजन और डीएनए प्राकृतिक पॉलिमर के कुछ उदाहरण हैं और ये पॉलिमर का आकार है जो प्लास्टिक को प्लास्टिसिटी देता है। प्लास्टिक लगभग किसी भी कार्बनिक पॉलिमर से बनाया जा सकता है। पहला सिंथेटिक प्लास्टिक प्लांट का निर्माण सेलूलोज से किया गया था, लेकिन आज अधिकांश प्लास्टिक पेट्रोकेमिकल्स से बनाया जाता है। ऐसे में अक्सर इसमें कुछ अतिरिक्त कृत्रिम मसाला देने के लिए अतिरिक्त एडिटिव्स डाले जाते हैं।



प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जिसे खत्म होने में सदियां बीत जाती हैं। यदि ये किसी खेत में चला जाए तो वहां सदियों तक जीवित रहता है और इससे उस खेत की उर्वरा शक्ति पर भी असर पड़ता है। वहीं यदि इसे जलाया जाए तो ये पूरी तरह खत्म नहीं होता और इसके धुएं से वायु प्रदूषण जैसी स्थितियां सामने आती हैं। इसके अलावा प्लास्टिक के तत्वों के भोजन में मिल जाने से अस्थमा, मोटापा और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यहां तक कि प्लास्टिक निर्माण के समय निकलने वाली जहरीली गैस पर्यावरण को प्रदूषित करती है। सिंगल यूज प्लास्टिक में थर्माकोल से बनी प्लेट, कप, ग्लास, कटलरी जैसे कांटे, चम्मच, चाकू, पुआल, ट्रे, मिठाई के बक्सों पर लपेटी जाने वाली फिल्म, निमंत्रण कार्ड, सिगरेट पैकेट की फिल्म, प्लास्टिक के झंडे, गुब्बारे की छड़ें और आइसक्रीम पर लगने वाली स्टिक, क्रीम, कैंडी स्टिक और 100 माइक्रोन से कम के बैनर होता है। सिंगल यूज प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक है। ऐसे प्लास्टिक न तो डिकंपोज होते हैं और न ही इन्हें जलाया जा सकता है। 

इनके टुकड़े पर्यावरण में जहरीले रसायन छोड़ता है जो इंसानों और जानवरों के लिए खतरनाक होते हैं। वहीं सिंगल यूज प्लास्टिक का कचरा बारिश के पानी को जमीन के नीचे जाने से भी रोकता है। जिससे लगातार ग्राउंड वाटर लेवल में कमी आती है। भारत में प्लास्टिक का आगमन लगभग 60 के दशक में हुआ था। आज स्थिति ये हो गई है कि महज 60 साल में ये प्लास्टिक कूड़े के पहाड़ में बदल गया है। कुछ साल पहले भारत में सिर्फ आटोमोबाइल क्षेत्र में इसका उपयोग पांच हजार टन वार्षिक था। संभावना ये भी जताई गई कि इसी तरफ उपयोग बढ़ता रहा तो जल्द ही ये 22 हजार टन तक पहुंच जाएगा। भारत में जिन इकाईयों के पास यह दोबारा रिसाइकिल के लिए जाता है वहां प्रतिदिन 1,000 टन प्लास्टिक कचरा जमा होता है। 
इस प्लास्टिक के कचरे का 75 फीसदी भाग कम मूल्य की चप्पलों के निर्माण में खपता है। 1991 में भारत में इसका उत्पादन 9 लाख टन था। आर्थिक उदारीकरण की वजह से प्लास्टिक को लगातार बढ़ावा मिल रहा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा पेश की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक समुद्रों में लगभग 20 करोड़ टन प्लास्टिक का कचरा जा चुका है। 2016 तक ये आंकड़ा हर साल 104 करोड़ टन था जो 2040 तक 307 करोड़ टन हने का अनुमान है। विशेषज्ञ बताते हैं कि जिस तेजी से समंदरों में प्लास्टिक का कचरा फैल रहा है यदि यही रफ्तार रही तो 2050 तक समुद्रों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा।

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