केंद्र सरकार ने PFI को
गैरकानूनी संगठन घोषित करते हुए उसपर 5 साल का
प्रतिबंध लगाया है। UAPA के तहत गठित एक ट्रिब्यूनल ने भी
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को गैर कानूनी संगठन घोषित करने वाले केंद्र सरकार के
फैसले को सही ठहराया था। जिसके बाद संगठन ने इस फैसले को हाईकोर्ट ले जाए बिना
सीधे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने संगठन से कहा है कि वह
हाईकोर्ट जाए बिना सीधे सुप्रीम कोर्ट कैसे आ गए। बता
दें कि देश में सांप्रदायिक नफरत फैलाने के आरोप में पिछली साल 27 सितंबर
को केंद्र सरकार ने पीएफआई पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। केंद्र सरकार के UAPA के
तहत प्रतिबंध के खिलाफ
पॉपुलर
फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को
सुप्रीम कोर्ट से फिलहाल राहत नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने PFI की बैन के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी और हाईकोर्ट जाने को कहा है। सर्वोच्च अदालत ने पीएफआई से कहा कि ट्रिब्यूनल
के आदेश को पहले हाईकोर्ट में चुनौती देनी चाहिए थी लेकिन आप सीधे सुप्रीम कोर्ट
चले आए, इसीलिए आप हाईकोर्ट जाइए।
दरअसल PFI ने ट्रिब्यूनल द्वारा UAPA के तहत प्रतिबंध बरकरार रखने के फैसले
को सीधे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मार्च महीने में दिल्ली हाई कोर्ट ट्रिब्यूनल ने
केंद्र सरकार द्वारा PFI पर भारत में लगाए बैन के फैसले को बरकरार रखा था।
गृह मंत्रालय ने 28 सितंबर 2022 को गैरकानूनी गतिविधियां
(रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पीएफआई और उसके 8 सहयोगियों को 5 साल के लिए बैन कर दिया था। पीएफआई पर इस्लामिक स्टेट
(आईएस) जैसे वैश्विक आतंकवादी संगठनों से संबंध रखने का आरोप है। केंद्र ने
पीएफआई और उसके जिन सहयोगी संगठनों पर रोक लगाई थी उनमें, जिसमें रेहाब इंडिया फाउंडेशन
(आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया
(सीएफआई), ऑल इंडिया इमाम्स
काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यमून राइट्स ऑर्गनाइज़ेशन (एनसीएचआरओ), नेशनल वूमंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, इम्पावर इंडिया फाइंडेशन और
रेहाब फाउंडेशन,
केरल शामिल थे।
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