सिख धर्म में जब भी कोई शुभ कार्य आरंभ
किया जाता है उसमें पंज प्यारो की अहम भूमिका होती है। चाहे अमृत पान करना हो या किसी
के द्वारा अनजाने में कोई बहुत बड़ी भूल हो गई हो या धर्म पर कोई आंच आ रही हो जिससे
सिख संगत की हानी हो सकती है ऐसे में पंज प्यारे मोर्चा संभालकर संगत को मार्गदर्शन
देते है वहीं शोभा यात्रा का नेतृत्व
की अगुवाई में पंज प्यारे हमेशा से
ही आगे चलते है। 1699 में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने पांच लोगों को (भाई दया सिंह, भाई साहिब सिंह, भाई धर्म सिंह, भाई हिम्मत सिंह,
भाई मोहकम सिंह) को यह नाम दिया था। पंच प्यारे सिख
धर्म में पांच भक्तों का समूह है जो गुरु गोबिंद सिंह जी के समय में उनके साथ थे। गुरु
गोबिंद सिंह जी ने इन पंज प्यारों को खालसा पंथ की स्थापना के लिए अपने साथ रखा
था और उन्हें खालसा समुदाय के स्थानांतरण करने का कारण भी बनाया था। इन पंज
प्यारों ने गुरु गोबिंद सिंह जी के आदेशों का पालन करते हुए खालसा पंथ की स्थापना
में अहम भूमिका निभाई और उनकी शिक्षा का पालन किया। इन्हें खालसा ब्रिगेड भी कहा
जाता है कहते हैं कि इन पंज प्यारों ने सिख इतिहास को मूल आधार प्रदान किया और सिख
धर्म को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।
इन आध्यात्मिक योद्धाओं ने न केवल युद्ध
के मैदान में विरोधियों से लड़ने की शपथ ली, बल्कि विनम्रता और सेवा भाव को भी दिखाया। पंज प्यारों
को खंडा दी पाहुल को शुरू करने, गुरुद्वारा
भवन की आधारशिला रखने,
कार-सेवा का उद्घाटन करने, प्रमुख धार्मिक जुलूसों का नेतृत्व करने या सिख धर्म से
जुड़े सभी प्रमुख कार्यों व समारोहों में अहमियत दी जाती है। आज भी पंज प्यारों को
नगर कीर्तन या शोभा यात्रा के दौरान विशेष महत्व दिया जाता है और वे ही शोभा
यात्रा का प्रतिनिधित्व करते हैं। सिखों के दसवें गुरू गुरु गोविन्द सिंह के कहने
पर धर्म की रक्षा के लिये अपना-अपना सिर कटवाने के उनके जो पांच साथी तैयार हुए
उन्हें सिखों के इतिहास में पंच प्यारे कहा जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने
इन्हें अमृत पिलाया था। जिनमे
भाई दया सिंह, भाई धरम
सिंह,भाई मोहकम सिंह, भाई
सहीब सिंह, भाई हिम्मत सिंह। वे
सभी गुरु गोबिंद सिंह जी के विश्वासपूर्वक भक्त थे और
उन्होंने खालसा समुदाय की उत्थान के लिए अपना सब कुछ बलिदान किया।
खालसा पंथ की स्थापना के साथ ही श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने
पंज प्यारो के लिए एक मर्यादित यूनिफ़ार्म यानि ड्रेस भी बताई जिसे खालसा की पहचान के
रूप में जाना जाता है,जिसे पंच ककार यानि शरीर को शुशोभित करने वाली पोशाख जिसमें 1.केश रखना यानि आजीवन बाल नहीं
कटवाने। 2.कंगा यानि
कंगी [कोम्ब] बालों को संभालने व स्वारने के लिए। 3.कछहरा यानि अंडर गरमेन्ट जो पूरी तरह से सूती
कपड़े का नाड़े वाला हाफ पैंट जैसा खुला व ढीला-ढाला हो जिसे गुप्तांगो को ढका जा सके।
4. किरपान या
तलवार जिसे मुसीबत के समय अपनी रक्षा के साथ दूसरों की जान बचाने के लिए प्रयोग में
लाया जा सके। 5.कड़ा लोहा
का वो गोल आकार वाला छलला जिसे खालसा या सिख व्यक्ति हाथों में धारण करते है जिसे सिख
होने का प्रतीक भी माना है। इस प्रकार गुरूओ ने अपने खालसे और सिख को एक मर्यादित यूनिफ़ार्म
यानि ड्रेस प्रदान की जिसका अमृत धारी सिख पूरा पालन करते है।
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