महाराष्ट्र
सरकार के मंत्री व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कदावर नेता छगन भुजबल ने कहा कि मराठाओं को आरक्षण देते समय
ओबीसी के लिए मौजूदा आरक्षण को कम नहीं किया जाना चाहिए। भुजबल ने सोमवार को
संवाददाताओं से कहा कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने स्वतंत्रता पूर्व काल में निजाम शासन से
कुनबी संबद्धता का पता लगाने के लिए समिति बनाई थी। उन्होंने कहा,मुझे
इस प्रक्रिया से कोई आपत्ति नहीं है। मैं राज्य के अन्य क्षेत्रों के लोगों के
विरुद्ध हूं जो कुनबी प्रमाणपत्र पाने के लिए झूठे दावे कर रहे हैं ताकि वे शिक्षा
और सरकारी नौकरियों में आरक्षण के मौजूदा लाभ उठा सकें। भुजबल राज्य के प्रमुख
ओबीसी नेता हैं। उन्होंने कहा,शिंदे समिति को
मराठवाड़ा क्षेत्र में पर्याप्त
प्रमाण मिले हैं। मराठवाड़ा के पात्र लोगों को प्रमाणपत्र मिलने चाहिए। उसका काम
पूरा हो गया है और अब इसे भंग किया जाना चाहिए। उन्होंने रविवार को हिंगोली जिले में एक रैली
में भी इसी तरह की बात कही थी। एनसीपी
नेता ने कहा,हमारे नेता प्रकाश शेंदगे ने मुख्यमंत्री को
करीब 7-8 दस्तावेज दिखाएं हैं जिनमें पुराने
प्रमाणपत्रों में कलम से छेड़छाड़ की गई।
इस तरह के फर्जी दावों पर विचार नहीं
होना चाहिए और इस तरह के फर्जी दस्तावेजों के आधार पर लोगों को कुनबी प्रमाणपत्र
नहीं दिए जाने चाहिए। छगन भुजबल ने सोमवार को कहा कि मराठा आरक्षण की मांग के
मुद्दे पर बनी न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) संदीप शिंदे की अध्यक्षता वाली समिति को
भंग कर दिया जाना चाहिए क्योंकि उसका काम पूरा हो गया है। भुजबल ने कहा कि वह मराठाओं को अलग से आरक्षण
के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन फर्जी या जाली दस्तावेज जमा करके कुनबी
(जाति) प्रमाणपत्र प्राप्त करने के तरीके के
खिलाफ हैं।
राज्य सरकार ने मराठा समुदाय के उन
लोगों को कुनबी प्रमाणपत्र देने के लिए विशेष परिचालन प्रक्रिया (एसओपी) तय करने
के लिहाज से न्यायमूर्ति शिंदे की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति बनाई थी, जिन्हें
निजाम कालीन दस्तावेजों में कुनबी कहा गया है। कुनबी (खेती से जुड़ा समुदाय) को
महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में रखा गया है। कार्यकर्ता मनोज
जरांगे के नेतृत्व में मराठा समुदाय मराठाओं को कुनबी प्रमाणपत्र देने की मांग कर
रहा है।
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