भारत में साल 1961 में दहेज कानून बनाया गया, जिसमें
दहेज लेन-देन को अपराध की श्रेणी में रखा गया। इसके बाद बिहार के गंगा बेल्ट के कई
हिस्सों से पकड़ुआ विवाह के मामले सामने आने लगे,अभी भी पटना, बेगूसराय, मोकामा
और नवादा पकड़ुआ विवाह का केंद्र बना हुआ है। पकड़ुआ विवाह प्रचलन शुरू होने की एक
बड़ी वजह दहेज था। शुरुआत में जब लड़की वाले दहेज नहीं दे पाते थे, तब
वे शादी के इस तरीके को अपनाते थे। दहेज कानून होने की वजह से मामला थाने में भी
नहीं जा पाता था,बाद के सालों में यह शादी
ऑर्गेनाइज तरीके से होने लगी। पुलिस सूत्रों के मुताबिक इस काम को बकायदा
सांगठनिक तरीके से अंजाम दिया जाता है। बिहार के गंगा बेल्ट में अभी भी कई गैंग
सक्रिय हैं,जो पकड़ुआ विवाह को पूर्ण करवाने का ठेका लेता
है। पकड़ुआ विवाह में सबसे पहले लड़के का अपहरण किया जाता है और
फिर उसे कुछ दिन के लिए किसी अनजान जगह पर रखा जाता है। मुहूर्त के दिन लड़के की
शादी पंडित से विधिवत करवाई जाती है। शादी के बाद दुल्हन को दुल्हे के घर भेज दिया
जाता है।
पकड़ुआ विवाह के अधिकांश मामलों में लड़का या
तो सरकारी नौकरी में रहता है या किसी अच्छे जगह पर सैटल रहता है। जानकारों का कहना
है कि पकड़ुआ विवाह की सबसे बड़ी वजह इन सरकारी नौकरी वाले लड़कों को दहेज न दे
पाना है। कई केस तो ऐसे सामने आए हैं, जिसमें लड़के और लड़की के परिवार के
बीच शादी की बात फाइनल हो गया होता है, लेकिन दहेज की वजह से शादी रूका रहता
है। पकड़ुआ विवाह के कई मामले लड़कियों के अशिक्षित
होने की वजह से भी सामने आ रहे हैं।
गंगा बेल्ट में ऊंच जातियों के लोग अभी भी
अपनी बेटियों के लिए पढ़ाई-लिखाई को ज्यादा तरजीह नहीं देते है। ऐसे में जब अरैंज
मैरिज के दौरान शिक्षा को लेकर बात नहीं बनती है, तो
इस लड़की वालों की तरफ से इस तरह का कदम उठाया जाता है। पकड़ुआ
विवाह में तेजी की एक वजह आपसी रिश्ते में शादी कराना भी है। 2022 में समस्तीपुर में एक केस सामने आया था, जिसमें
एक लड़के की शादी उसके बहन की ननद से ही करा दी गई थी। लड़का अपने बहन को छोड़ने
के लिए उसके ससुराल आया था। पटना वुमेंस कॉलेज ने 2020 में
बिहार में पकड़ुआ विवाह को लेकर एक शोध किया था।
इस शोध के मुताबिक पकड़ुआ शादी के
सफल होने पर सस्पेंस बना रहता है। इसकी
बड़ी वजह लड़के के परिवार की लड़की को लेकर सोच रहती है। इस शोध के लिए 600 लोगों से बात भी की गई, जिसमें
से 47 प्रतिशत लोगों ने कहा कि पकड़ुआ विवाह में
लड़की और लड़का दोनों विक्टिम रहता है। 58 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इस तरह की
शादी लंबे समय तक सफल नहीं रह पाती है। 1970 के आसपास प्रचलन में आया यह विवाह 90 दशक में काफी फला-फूला हाल के वर्षों में भी पकड़ुआ
विवाह के मामले में काफी बढ़ोतरी देखी गई। स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक
बिहार में 2020 में जबरन शादी कराने के 7,194, 2019 में 10,295, 2018 में
10,310 और 2017 में 8,927 मामले
सामने आए।
हालांकि, इसमें से अधिकांश मामले आपसी सहमति से निपटाए
गए। बिहार पुलिस मुख्यालय के मुताबिक 2020 में पकड़ुआ विवाह के 33 तथा 2021 में 14 मामले
दर्ज किए गए। बिहार के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक पकड़ुआ विवाह के उन्हीं
मामलों को केस के रूप में दर्ज किया जाता है, जिसमें
समझौते की गुंजाइश पूरी तरह खत्म रहती है। पटना हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद बिहार
का पकड़ुआ विवाह (जबरन शादी) सुर्खियों में है। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने शादी को
लेकर आपसी सहमति पर जोर दिया है। कोर्ट ने पकड़ुआ विवाह के एक मामले को रद्द करते
हुए कहा है कि सिर्फ मांग में सिंदूर भर देना शादी नहीं है। बिहार में पकड़ुआ
विवाह के बढ़ते मामले के बीच हाईकोर्ट का यह फैसला काफी अहम माना जा रहा है।
No comments:
Post a Comment