महाराष्ट्र हिंगोली के गोरेगांव के कर्ज से प्रभावित 10 किसानों ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से उनके शरीर के अंगों को बेचने और स्थानीय बैंकों से बकाया ऋण की वसूली करने के लिए कहा है। किसानों ने सीएम को एक पत्र लिखकर अपनी आंखें, लीवर, किडनी और अन्य अंग बेचने की पेशकश की है, जिससे प्राप्त आय का उपयोग उनके लंबित बकाया को चुकाने के लिए किया जा सकता है। इस चौंकाने वाले कदम पर कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष विजय वडेट्टीवार और शिवसेना (यूबीटी) के किसान नेता किशोर तिवारी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। अधिकारियों की सहायता करने के लिए, किसानों ने अपने कीमती शरीर के अंगों के लिए एक रेट-कार्ड भी जारी किया है- 90,000 रुपये प्रति लीवर, 75,000 रुपये प्रति किडनी और 25,000 रुपये प्रति आंख। कवरखे ने कहा कि अब पत्नियां, बच्चे और परिवार के
Friday, November 24, 2023
हमारी आंखें, लीवर, किडनी और अन्य अंग ले लो हमें कर्ज मुक्त करो महाराष्ट्र की शिंदे सरकार से किसानों ने लगाई गुहार....
अन्य सदस्य भी बैंकों और निजी ऋणदाताओं के लगातार उत्पीड़न से बचने के लिए अपने
शरीर के अंगों आदि को त्यागने के लिए स्वेच्छा से आगे आए हैं। जाधव, मुले और अन्य ने दावा
किया, यह सिर्फ शुरुआत है। हिंगोली और पड़ोसी जिलों के
सैकड़ों किसान आगे आकर अपना कर्ज चुकाने और शांति से जीने की उम्मीद के लिए अपने
शरीर के अंगों को बेचने की योजना बना रहे हैं। अनपेड लोन वाले किसान हैं,दीपक
कवरखे (3 लाख रुपये), नामदेव पतंगे (2.99
लाख
रुपये), धीरज मपारी (2.25
लाख
रुपये), गजानन कवरखे (2 लाख रुपये), रामेश्वर कवरखे, अशोक कवरखे, गजानन जाधव (1.50
लाख
रुपये प्रत्येक), दशरथ मुले (1.20
लाख
रुपये), विजय कवरखे (1.10
लाख
रुपये),
रामेश्वर कवरखे (90,000
रुपये)
हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक गजानन कवरखे ने आईएएनएस को बताया, हमने सीएम को संबोधित
ज्ञापन सेनगांव तहसीलदार और गोरेगांव पुलिस स्टेशन को सौंप दिया है और इसे सीएम तक
पहुंचाने का अनुरोध किया है। उन्होंने हमारे संचार को स्वीकार कर लिया है, लेकिन आगे कोई
प्रतिक्रिया नहीं आई है।अपनी निराशा बताते हुए कवरखे ने कहा,यहां के किसान कपास और
सोयाबीन की खेती करते हैं लेकिन इस साल मौसम की समस्याओं और खेतों में खड़ी फसलों
पर बीमारियों की मार के कारण लगभग 80 प्रतिशत फसल बर्बाद हो गई। परेशान टिलरों ने बताया
कि गंभीर नुकसान के साथ खरीफ सीजन व्यावहारिक रूप से नष्ट हो गया और अब किसानों के
पास चालू रबी सीजन की बुआई के लिए पैसे या संसाधन नहीं हैं। कवरखे ने अफसोस जताते
हुए कहा,फसल बीमा या यहां तक कि सरकार की ऋण माफी की बड़ी
घोषणा के रूप में कोई मदद नहीं मिल रही है।
कोई उचित मूल्य निर्धारण तंत्र या
न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं है। हमारी खेती की लागत आय से दोगुनी है। अब जीवित रहना
असंभव हो गया है। हमारे पास अपने शरीर के अंगों को बेचने और कर्ज चुकाने के अलावा
कोई विकल्प नहीं बचा है। मुंबई में वडेट्टीवार ने इसे अत्यंत गंभीर मामला बताया और
राज्य सरकार से महाराष्ट्र में तुरंत सूखा घोषित करने और पीड़ित किसानों को आवश्यक
सहायता प्रदान करने का आग्रह किया। यवतमाल में तिवारी ने जमीनी
हकीकतों की अनदेखी करने या राज्य के बड़े हिस्से में सूखे की गंभीर स्थिति के लिए
सरकार की आलोचना की, जिसने किसानों को ऐसे चरम कदम उठाने के लिए मजबूर
किया है।
वडेट्टीवार ने कहा कि,अगर ये किसान विधायक या सांसद होते, तो राज्य सरकार उनके
पास खोखा (करोड़ रुपये के लिए बोली जाने वाली भाषा) लेकर
दौड़ पड़ती,लेकिन उसी शासन के पास इन सूखा प्रभावित और कर्ज के बोझ
से दबे किसानों के लिए कोई धन नहीं है।
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